एक गज़ल
आजकल उनके मेहरबाँ होने के
आसार नज़र आते हैं
अब तो सख्त जज़्बों के
पिघलने के आसार नज़र आते हैं
इतरा रही इक नयी कोंपल, उग
आई जो, ठूँठ पर
बहार के दबे पाँव लौट आने
के आसार नज़र आते हैं
सिमट जायेंगे हम बाहों में
तेरी इक बड़ा सिफ्र बनकर,
अब तो खुदाई को खो देने के
आसार नज़र आते हैं
जब साथ है तुम्हारा, खेल
ज़िंदगी का पुरज़ोर खेलेंगे हम,
अब तो ज़िंदगी के किरदार
निभाने के आसार नज़र आते हैं
21 comments:
Great Ghazal - Deepak
जब साथ है तुम्हारा, खेल ज़िंदगी का पुरज़ोर खेलेंगे हम,
अब तो ज़िंदगी के किरदार निभाने के आसार नज़र आते हैं
अत्यंत मर्मस्पर्शी लेखन .. हर शेर बहुत ही गहरे तक उतरते हुये !
** कापी पेस्ट ...! के लिये एक विकल्प है .. जिससे आप अपना ब्लाग और अभिव्यक्ती सुरक्षित कर सकती हैं ! वो विकल्प अवश्य लिजियेगा !
सादर !
आभार साझा करने के लिये
अनुराग
बहुत खूबसूरत .. सुन्दर भाव..
Thanks Deepak
अनुराग बहुत शुक्रिया—टिप्पणी के लिये और उससे ज़्यादा मुझे विश्वास दिलाने के लिये कि मैं Blog बना सकती हूँ. ढेर सारी शुभकामनायें
बहुत शुक्रिया नीरज कुमार
बहुत खूब कही गई ग़ज़ल | जय हो
each line...... marvellous.
बहुत ही खूबसूरती से भावों को शब्दों का जामा पहनाया है
ब्लॉग-जगत में आपका खूब-खूब स्वागत है :)
waah bahut badhiya hai. khoob.
अत्यंत मर्मस्पर्शी लेखन
बहुत सुंदर सी है यह आपकी ग़ज़ल
Thanks so much Priyanka Pandey for lovely words. Keep visiting
शिखा आप यहाँ आई....बहुत अच्छा लगा...बहुत शुक्रिया
Shukriya Aparna Srivastava. Aate rahiye
Thanks so much Priyanka Pandey for lovely words. Keep visiting
बहुत खूबसूरती से शब्दों को ग़ज़ल में ढाला है ....सुंदर अभिव्यक्ति.....
Thank you so much Lekh Nath for you presence
Vinodji aapka bahu Shukriya
सुन्दर शुरुआत , जारी रखिये|
शुभकामनायें
(देरी के लिए माफ़ी)
Thanks Neena Shail Bhatnagar and Akash Mishra
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