वह
बचपन निराश,
उदास...
सूखा
बदन
महीन
रुदन
उभरती
पसलियाँ
ओठों
पर पपड़ियाँ
उदासीन
निगाहें
टहनियों
सी बाहें
कह
नहीं वो पाया
मन
में था ये समाया
मुट्ठी
भर अनाज
एक
बोतल दूध
अंजलि
भर करूणा
काश...ऐसा
न होता
लबालब
भंडार
कहती
सरकार
पर
पड़ गया है गाज
सड़
रहा अनाज
जन्मदिन,
शादी मनाते
छलक
जाती हैं दावतें
वैभवशलियों
के
फैलते
साम्राज्य
बहुलता
में है खाद्य
कितना
भी हो व्यर्थ
नहीं
कोई अर्थ
काश...ऐसा
भी न होता
गीता मल्होत्रा
10 comments:
v painful but v effective expression. v nice geeta maám
इत्तेफाकन पिछले दो दिनों से मैं कुछ ऐसे ही केस देख रहा हूँ , बेहद दुखद |
Behad marm sparshi ....... :(
Thanks for your feedback Anju
Akash Mishra Bahut Shukriya
Aabhar Vivek Singhania
Thanks for your feedback Anju
waah .... laajawaab .... behad sashakt lekhan
waah .... laajawaab ... behad sashakt lekhan ... badhai
Bahut Shukriya Pradeepji. Shukraguzar hoon aapne idhar ka rukh kiya aur apne comments se nawaza
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